Ancestral Property Rights – पैतृक संपत्ति यानी वो संपत्ति जो आपको आपके पिता, दादा या परदादा से मिली हो, इसे लेकर कई लोगों के मन में सवाल होते हैं कि क्या हमेशा उनका हक बना रहता है या नहीं। अक्सर लोग सोचते हैं कि पैतृक संपत्ति पर उनका अधिकार अनिश्चितकाल तक रहता है, लेकिन ऐसा नहीं है। कानून के मुताबिक, इस संपत्ति पर भी दावा करने के लिए एक निश्चित समय सीमा तय है। अगर आपने इस तय समय के अंदर दावा नहीं किया, तो आपके हाथ से वो संपत्ति निकल सकती है।
परिवार में पैतृक संपत्ति को लेकर विवाद आम
पैतृक संपत्ति से जुड़ी बातों को लेकर कई बार परिवारों में विवाद होते रहते हैं। किसी भी परिवार में अगर जायदाद को लेकर मतभेद हो, तो ये मामला अक्सर कोर्ट तक पहुंच जाता है। पैतृक संपत्ति पर दावा करने की भी एक लिमिट होती है, जिसके बाद अगर कोई दावा नहीं करता, तो अधिकार खत्म माना जाता है। इसका मतलब साफ है कि अगर आपने समय रहते अपनी संपत्ति के अधिकार के लिए कदम नहीं उठाए, तो वह संपत्ति आपके कब्जे से बाहर हो सकती है।
पैतृक संपत्ति पर दावा करने की समय सीमा
तो सवाल उठता है कि पैतृक संपत्ति पर दावा कितने साल तक किया जा सकता है? कानूनी तौर पर 12 साल का समय तय है। अगर किसी को पैतृक संपत्ति में से वंचित किया गया है, तो उसे 12 साल के भीतर कोर्ट में जाकर अपना दावा दर्ज कराना होता है। इससे ज्यादा समय निकल जाने पर दावा करना बहुत मुश्किल हो जाता है और कोर्ट भी ऐसे मामलों को आसानी से स्वीकार नहीं करता।
वसीयत के जरिए बेदखली और कानूनी उपाय
कई बार ऐसा होता है कि गलत वसीयत के जरिए किसी को पैतृक संपत्ति से बेदखल कर दिया जाता है। ऐसे मामलों में भी कोर्ट में अपील की जा सकती है, लेकिन यह जरूरी है कि 12 साल के अंदर कार्रवाई की जाए। 12 साल के बाद अगर कोई दावा नहीं करता, तो संपत्ति पर उसका अधिकार खत्म माना जाएगा। बाद में केवल कुछ विशेष परिस्थितियों में ही कोर्ट सुनवाई करता है, जैसे कि कोई वाजिब कारण हो, वरना संपत्ति आपके हाथ नहीं आएगी।
संयुक्त परिवार और पैतृक संपत्ति में हक
पैतृक संपत्ति में परिवार के कई सदस्य समान रूप से हकदार होते हैं क्योंकि ये आमतौर पर संयुक्त परिवार की संयुक्त संपत्ति होती है। इसलिए किसी को भी बिना उचित वजह के बेदखल करना आसान नहीं होता। माता-पिता केवल अपनी खुद की कमाई से खरीदी गई संपत्ति (स्वअर्जित संपत्ति) से अपने बच्चों को बाहर कर सकते हैं। हालांकि, कोर्ट ने कुछ मामलों में बच्चों को पैतृक संपत्ति से बेदखल करने के फैसले भी दिए हैं, लेकिन यह हमेशा माता-पिता के पक्ष में नहीं होता। कोर्ट का फैसला मामले के हालात और सबूतों पर निर्भर करता है।
पैतृक संपत्ति और स्वअर्जित संपत्ति में अंतर
यहां एक जरूरी बात समझनी चाहिए कि पैतृक संपत्ति और स्वअर्जित संपत्ति में फर्क होता है। पैतृक संपत्ति वो होती है जो पिता, दादा या परदादा से 4 पीढ़ियों तक बिना बंटवारे के परिवार में आई हो। अगर किसी भी पीढ़ी में इस संपत्ति का बंटवारा हो चुका है, तो वह संपत्ति पैतृक संपत्ति नहीं मानी जाएगी। दूसरी तरफ, पिता की स्वअर्जित संपत्ति वह होती है जो उन्होंने अपनी कमाई से हासिल की हो। जब पैतृक संपत्ति का बंटवारा हो जाता है, तो माता-पिता अपनी स्वअर्जित संपत्ति को अपनी मर्जी से अपने बच्चों में बांट सकते हैं या उन्हें बाहर भी कर सकते हैं। इसलिए जरूरी है कि हम ये समझें कि हर विरासत की गई संपत्ति पैतृक या पुश्तैनी संपत्ति नहीं होती।
पैतृक संपत्ति पर हक बचाने के लिए सावधानियां
अगर आपके परिवार में पैतृक संपत्ति है और आप चाहते हैं कि आपका हक सुरक्षित रहे, तो समय पर दावा जरूर करें। 12 साल की लिमिट का ध्यान रखना बहुत जरूरी है क्योंकि इससे आगे दावा करना बेहद मुश्किल होता है। अगर आपको लगता है कि आपको संपत्ति से वंचित किया गया है या कोई गलत वसीयत बनाई गई है, तो तुरंत कानूनी सलाह लें और कोर्ट में अपनी मांग दर्ज कराएं।
Disclaimer
यह लेख केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य से है। संपत्ति से जुड़े मामलों में हमेशा विशेषज्ञ वकील की सलाह लेना आवश्यक होता है क्योंकि हर केस की परिस्थितियां अलग होती हैं। कानून समय-समय पर बदलता रहता है, इसलिए सही जानकारी और उचित कार्रवाई के लिए पेशेवर मार्गदर्शन जरूरी है।