Govt Employees News – सरकारी कर्मचारियों के बीच अक्सर यह सवाल उठता रहता है कि अगर किसी केस में उन्हें सजा हो जाती है, तो क्या उनकी नौकरी भी चली जाएगी? इस बात को लेकर हमेशा संशय बना रहता है। अब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले में बड़ा फैसला सुनाकर कर्मचारियों की उलझन दूर कर दी है। कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि किसी सरकारी कर्मचारी को सजा मिलना अपने आप में उसकी नौकरी खत्म करने के लिए काफी नहीं होता। इस फैसले की खूब चर्चा हो रही है क्योंकि यह हर सरकारी कर्मचारी के लिए जानना जरूरी है।
बिना विभागीय जांच के बर्खास्तगी नहीं हो सकती
सरकारी कर्मचारियों से जुड़े मामले अक्सर कोर्ट तक पहुंचते हैं। ऐसे मामलों में कर्मचारियों की नौकरी को लेकर असमंजस रहता है कि सजा मिलने के बाद क्या उनका काम भी खत्म हो जाएगा या फिर वे नौकरी पर बने रहेंगे। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम मामले में साफ कहा है कि सजा मिलने के बावजूद बिना विभागीय जांच के किसी भी कर्मचारी को बर्खास्त नहीं किया जा सकता। यानी अगर कोर्ट ने सजा सुनाई है, तब भी विभागीय प्रक्रिया पूरी किए बिना कर्मचारी की नौकरी नहीं छीनी जा सकती।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने किया क्या फैसला?
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले में कई महत्वपूर्ण टिप्पणियां की हैं। कोर्ट ने कहा है कि सरकारी कर्मचारी को नौकरी से हटाने के लिए विभागीय जांच जरूरी है। बिना इस जांच के बर्खास्तगी का आदेश अमान्य होगा। इसी कारण से हाईकोर्ट ने एक सरकारी कर्मचारी की बर्खास्तगी के आदेश को रद्द कर दिया।
असिस्टेंट टीचर की बर्खास्तगी का मामला
यह फैसला कानपुर देहात के एक असिस्टेंट टीचर के मामले में आया है। इस शिक्षक को दहेज हत्या के केस में उम्र कैद की सजा सुनाई गई थी। इसके बाद बेसिक शिक्षा अधिकारी (BAS) ने उसे नौकरी से बर्खास्त कर दिया था। लेकिन हाईकोर्ट ने इस कार्रवाई को अनुच्छेद 311(2) के तहत गलत बताया। कोर्ट ने कहा कि बिना उचित विभागीय जांच और प्रक्रिया के किसी भी सरकारी कर्मचारी को न बर्खास्त किया जा सकता है और न ही उनके पद या रैंक में कोई कटौती की जा सकती है।
केस की पूरी कहानी: सहायक अध्यापक मनोज का मामला
यह मामला एक सहायक अध्यापक मनोज का है, जो 1999 से एक सरकारी प्राइमरी स्कूल में कार्यरत थे। 2009 में उन पर दहेज हत्या का मामला दर्ज हुआ था। सेशन कोर्ट ने उन्हें दोषी मानते हुए उम्र कैद की सजा दी थी। इसके बाद बेसिक शिक्षा अधिकारी ने उनकी नौकरी खत्म कर दी। हालांकि, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस बर्खास्तगी आदेश को रद्द करते हुए दो महीने के भीतर पुनः उचित विभागीय प्रक्रिया अपनाने का निर्देश दिया है। अब मनोज की नौकरी इस नए आदेश पर निर्भर करेगी।
नौकरी पर बड़ा असर, लेकिन नियमों के साथ प्रक्रिया जरूरी
इस फैसले से साफ हो गया है कि सजा मिलने के बावजूद सरकारी कर्मचारी की नौकरी तब तक सुरक्षित रहती है जब तक विभागीय जांच पूरी न हो और उचित प्रक्रिया का पालन न किया जाए। इससे कर्मचारियों को एक तरह की सुरक्षा मिली है कि उन्हें तुरंत नौकरी से निकाल नहीं दिया जाएगा। वहीं विभागीय अधिकारी भी अपनी जिम्मेदारी के साथ जांच करेंगे और सही प्रक्रिया अपनाएंगे।
फैसला पूरे सरकारी कर्मचारियों के लिए अहम
यह निर्णय ना केवल कानपुर देहात के कर्मचारी के लिए बल्कि पूरे देश के सरकारी कर्मचारियों के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल है। कोर्ट ने साफ किया है कि सरकारी नौकरी के मामलों में नियमों और प्रक्रिया का पालन अनिवार्य है, ताकि किसी भी कर्मचारी के अधिकारों का उल्लंघन न हो।
Disclaimer
यह लेख सिर्फ जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है और इसे किसी भी कानूनी सलाह के रूप में न लें। सरकारी कर्मचारी अपनी नौकरी या किसी अन्य प्रशासनिक मामले में स्पष्ट जानकारी के लिए संबंधित विभाग या विशेषज्ञ से संपर्क करें। कोर्ट के फैसले और नियम समय-समय पर बदल सकते हैं, इसलिए नवीनतम जानकारी लेना आवश्यक है।